पश्चिम चंपारण जिले का एक नजर में संक्षिप्त इतिहास

बेतिया। चम्पारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है वहीं दूसरी ओर आधुनिक भारत में गाँधीजी का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद मिथिला सहित समूचा चम्पारण प्रदेश कर्नाट वंश के अधीन हो गया। बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला चम्पारण है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पश्चिमी चंपारण एवं पूर्वी चंपारण एक है। चंपारण का बाल्मिकीनगर देवी सीता की शरणस्थली होने से अति पवित्र है वहीं दूसरी ओर गाँधीजी का प्रथम सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अजातशत्रु के द्वारा वैशाली को जीते जाने के बाद यह मौर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश तथा गुप्त वंश के अधीन रहा। सन 750 से 1155 के बीच पाल वंश का चंपारण पर शासन रहा। इसके बाद मिथिला सहित समूचा चंपारण प्रदेश सिमराँव के राजा नरसिंहदेव के अधीन हो गया। बाद में सन 1213 से 1227 ईस्वी के बीच बंगाल के गयासुद्दीन एवाज ने नरसिंह देव को हराकर मुस्लिम शासन स्थापित की। मुसलमानों के अधीन होने पर तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा। मुगल काल के बाद के चंपारण का इतिहास बेतिया राज का उदय एवं अस्त से जुड़ा है। बादशाह शाहजहाँ के समय उज्जैन सिंह और गज सिंह ने बेतिया राज की नींव डाली। मुगलों के कमजोर होने पर बेतिया राज महत्वपूर्ण बन गया और शानो-शौकत के लिए अच्छी ख्याति अर्जित की। 1763 ईस्वी में यहाँ के राजा धुरुम सिंह के समय बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा। इसके अंतिम राजा हरेन्द्र किशोर सिंह के कोई पुत्र न होने से 1897 में इसका नियंत्रण न्यायिक संरक्षण में चलने लगा जो अबतक कायम है। हरेन्द्र किशोर सिंह की दूसरी रानी जानकी कुँवर के अनुरोध पर 1910 में बेतिया महल की मरम्मत करायी गयी थी। बेतिया राज की शान का प्रतीक यह महल आज यह शहर के मध्य में इसके गौरव का प्रतीक बनकर खड़ा है। उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय चंपारण के ही एक रैयत श्री राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की खेती से त्रस्त किसानों को उनका अधिकार दिलाया। अंग्रेजों के समय 1866 में चंपारण को स्वतंत्र इकाई बनाया था। प्रशासनिक सुविधा के लिए 1972 में इसका विभाजन कर पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण जिला बना दिया गया।

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