बार बार इस तरह झुक जाती हूँ मैं
इसमें झलकती मेरी खता नही
ये मेरी रिश्ते निभाने की आदत है..!
पीठ में जख्म लेकर भी मौन हूं मैं
ये मेरी हिम्मत में कोई कमी नही
अपनों की खुशी के लिए शहादत है.!
हर किसी के सामने मुस्कुराती हूं मैं
ये मेरी कमजोरी नही बल्कि
अपनों के प्यार के लिए इबादत है..!
पत्थर की सील हूं मैं दुनिया के लिए
तन्हाई के आंसूं कहें मोम की
ये अपनों के लिए मेरी नजाकत है.!
मेरी जिंदगी में तो कुछ सही नही है
फिर भी खामोश हूँ मैं क्योंकि
मेर हर अपना सही सलामत है…!
सुकून आज भी मिलता है तन्हाई में,
दिखावे के लिए ही “मलिक”
बस हर महफ़िल मेरी अमानत है..!
“सुषमा” की निभाने की आदत है..!!
सुषमा मलिक “अदब”
रोहतक (हरियाणा)