बसंत ऋतु में होने वाली बीमारियां एवं उनका आयुर्वेदिक घरेलू उपचार

-वसंत ऋतु और स्वास्थ्य-
ऋतुओं के संधीकाल में जब एक ऋतू समाप्त हो रही होती हैं तथा दूसरी ऋतू प्रारंभ हो रही होती हैं, उस समय खासतौर से सावधान रहना चाहिए।
वसंत ऋतू का आगमन विसर्ग और आदान का सन्धिकाल होता हैं, अतः कभी गर्मी महसूस होती हैं तो कभी शर्दी का एहसास होता हैं। इस ऋतू में दक्षिण दिशा में शीतल मंद व सुगंधित हवा प्रवाहित होने, सूर्य की रस्मियों में तीव्रता आने, पेड़ो में नूतन कोपलें आने, कमल, मौलश्री, अशोक, ढाक आदि के पेड़ो पर फूल आने तथा कोयल की कुक और भौरों के गुंजायमान स्वर से मौसम अत्यधिक सुंदर और मनोहारी हो जाता हैं।
मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी भी इस ऋतू के प्रभाव से अछूते नहीं रह पाते , वो भी आनंदित होने लगते हैं।
वसंत के मोहक प्रभाव को देखते हुवे ही इस ऋतू को “ऋतुराज” के नाम से जाना जाता हैं।
चूंकि इस ऋतू में स्थायीपन नहीं रहता इसलिए इसे चंचल स्वभाव वाली ऋतू माना जाता हैं।

हेमंत ऋतू (अगहन और पूस महीने ) में भारी तथा चिकनी वस्तुओं की सेवन से शरीर में जो कफ़ (बलगम) संचित होता हैं, वह वसंत ऋतू में सूर्य की गर्मी से पिघल कर कई प्रकार की व्याधियां उत्पन करता हैं,

इसलिए इस ऋतू में आहार – विहार के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए।।

*वसंत ऋतू में हितकारी आहार*
वसंत ऋतू में ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में संचित कफ़ नष्ट हों,
इसके लिए रूखे, चटपटे,ताजे हल्के एवं सुपाच्य भोज्यपदार्थो का सेवन करना चाहिए।

घी के साथ छिलके वाली मुंग की दाल एवं चावल की खिचड़ी, पुराना गेहूं, बाजरा, जौ, साठी चावल, अरहर की दाल, अदरक, आंवला, गाजर, मूली, शलजम, पेठा, अमरुद, कचनार, गुलर, सरसों का साग, जिमीकन्द, हरड़, बहेड़ा, लहसून, पालक, चौलाई , सोंठ, नीम, गिलोय, शहद आदि का सेवन प्रचुर मात्रा में करें।


इस ऋतू में फलों का सेवन भी हितकारी होता हैं।

*अहितकारी आहार*
इस ऋतू में तले भूने और मिर्च मसालेदार तथा भारी खट्टे और देर से पचने वाले खाद्य पढ़ार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।

वसंत ऋतू में जहां तक हों सके दही का सेवन नहीं करना चाहिए, जिन्हे प्रतिदिन दही खाने की आदत हैं वे काली मिर्च का चूर्ण और नमक मिलाकर दही का सेवन कर सकते हैं।।

ज्यादा भोजन करने ज्यादा मिठा खाने , ठंडा और बासी खाने से, उड़द, नया गेहूँ, दही , सिंघाड़ा, केला आदि का सेवन से कफ़ प्रकूपित होता हैं।

*वसंत ऋतू में हितकारी विहार*
वसंत ऋतू में योगासन या व्यायाम करना लाभकारी होता हैं, यदि प्रतिदिन व्यायाम संभव न हों तो शुबह जल्दी उठकर पार्क या खुले स्थानों में टहलने जाना चाहिए।
इससे शरीर में स्फूर्ति का संचार होता हैं, रक्त परिसंचरण में गतिशीलता आती हैं।।

व्यायाम के कुछ देर बाद पूरे शरीर में सरसों या जैतून के तेल से मालिस करने से शरीर को शक्ति मिलती हैं, यदि प्रतिदिन मालिस संभव न हों तो सप्ताह में एक – दो बार मालिस जरूर करें

दांतो के स्वच्छता के लिए नीम, बाबूल आदि का दातुन उत्तम हैं

वसंत ऋतू में होने वाले रोग
इस ऋतू में गले में खराश, टॉन्सिल, नज़ला, ज़ुकाम, शर्दी खांसी, खसरा, न्यूमोनिया, इंफ्लुंजा, बुखार, शरीर में भारीपन् , अनिंद्रा, आँखों के रोग , कफ़ के रोग आदि परेशान करते हैं।।

उपचार

खांसी,बलगम,बुखार:

अदरक का रस 100ml
तुलसी का रस 50ml
शहद 200ml
पान के पत्ते का रस 50ml

💛सबका रस Grinder or Mixer में निकाल कर आप इसे एक शीशी में संभालकर रख लें । फ्रीज में रख सकते है । वैसे भी बाहर रख सकते है । कोई दिक्कत नही। जरूरत अनुसार बड़ो को 2 से 4 चम्मच तक गर्म पानी में ( चाय जैसे उबले जल में ) डालकर घूट-घूट करके पिएं
बच्चों को चोथाई मात्रा दें।
पहली ही खुराक अंग्रेजी दवा से पहले इन्जेक्शन से भी तेज काम करती है।

दूसरा योग

1. अनार छिलका 50 ग्राम
2. बहेडा छिलका 50 ग्राम
3. तुलसी पत्र सूखे 50 ग्राम
4. भारंगी की जड 50 ग्राम
5. त्रिकुटा चूर्ण 30 ग्राम

सभी को पीसकर सुरक्षित रखे

1 से लेकर 2 ग्राम दवा शहद से लें पहली खुराक में ही खाँसी में आराम होता है।

तीसरा योग

*सितोपलादि चूर्ण* 1-2 ग्राम चूर्ण शहद या घी के साथ सुबह शाम कर सकते हैं। (दवा लेने के बाद आधे घंटे तक कुछ नही खाना हैं पानी भी नही लेना )

उपरोक्त किसी एक योग को उपचार में लाकर स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं ।।
धन्यवाद

डॉ. प्रकाश कुमार

_एम.डी (गोल्ड मेडलिस्ट)_
_पीएच.डी (स्कॉलर)_
वन वाटिका आयुर्वेद नेचुरोपैथी अनुसंधान केंद्र
(कोतवाली चौक बेतिया)
सम्पर्क सूत्र:- +91 9060355969

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