बेतिया/बगहा। बगहा अनुमंडल अंतर्गत ठकराहा में आज के समय में बच्चों में नैतिक मूल्यों का जो अभाव दिख रहा है उसका वजह उन बच्चों को नैतिक शिक्षा नहीं मिल पाने के कारण है। कुछ बच्चे ही ऐसे होते हैं, जो दैनिक दिनचर्या की शुरुआत अपने माता पिता को प्रणाम करने के साथ होती है। यह एक अच्छी आदत भी है। लेकिन अभिभावक ही नैतिक मूल्यों के प्रति गंभीर नहीं है। उक्त बातें मां सोना भवानी मंदिर ठकरहां में आयोजित शतचंडी महायज्ञ में चल रहे श्रीराम कथा में श्री अयोध्याधाम से पधारी ब्रह्मर्षि वेदांती जी महाराज की कृपा पात्र शिष्या साध्वी स्मिता ने चौथे दिन भगवान राम के जन्म उत्सव का प्रसंग के दौरान सुनाया। उन्होंने नामकरण के बाद प्रभु के मनोहर बाल रूप का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि प्रभु राम ने बाल क्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया। प्रभु की बाल लीला का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार माता कौशल्या ने राम जी को स्नान और श्रृंगार करके पालने पर पीड़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया, पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया और स्वयं वहां गई, जहां रसोई बनाई गई थी। फिर माता पूजा के स्थान पर लौट आई और वहां आने पर पुत्र को भोजन करते देखा। माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई, तो वहां बालक को सोया हुआ देखा। फिर देखा कि वही पुत्र वहां भोजन कर रहा है। उनके हृदय में कंपन होने लगा। वह सोचने लगी कि यहां और वहां मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है। राम जी अपने माता को घबराया देख मधुर मुस्कान से हंस दिए, फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भूत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं (माता का) शरीर पुलकित हो गया, मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूंदकर उसने रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर श्री रामजी फिर बाल रूप धारण कर लिये। कथा में संगीत के साधक राधेश्याम त्यागी, आयुष श्रीवास्तव, विजय दास अनमोल आदि अपनी सेवाएं दे रहे है। कथा का शुभारम्भ व्यासपीठ का पूजन एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया।