काठमांडू में स्थित मां गुह्येश्वरी मंदिर में प्रतिमा नहीं फिर भी तांत्रिक अनुष्ठानों का बड़ा केंद्र

काठमांडू।  नेपाल की राजधानी काठमांडू की पहचान वर्षो से मंदिरों के शहर के रूप रही है। उसमें से एक है गुह्येश्वरी मंदिर सबसे अलग है। यह शक्तिपीठ पशुपतिनाथ मंदिर के पूर्व में बागमती नदी की दूसरी ओर स्थित है। यह स्थान मां सती और शिव की एकता का अद्भुत प्रतीक है। पशुपतिनाथ मंदिर से पूर्व मां गुह्येश्वरी के दर्शन करने की पौराणिक परंपरा है। भारत और नेपाल से हजारों भक्त दर्शन के लिए यहां पहुंचे हैं। इस मंदिर में मां की कोई प्रतिमा नहीं है। मंदिर के गर्भगृह में एक छिद्र है, जिसमें से जल की धारा बहती रहती है। इसे चांदी के कलश से ढंका गया है। इस मंदिर में सती और शिव दोनों की पूजा होती है। सती को महामाया और शिव को कपाली के रूप में पूजा जाता है। दिव्य आकृति के पास में ही भैरव कुंड है। भक्त इस कुंड में अपना हाथ डालते हैं और जो कुछ भी मिलता है, उसे परमात्मा के आशीर्वाद के तौर पर स्वीकार किया जाता है।

गुह्येश्वरी अपने तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए भी जाना जाता है। माना जाता है कि शक्ति पाने के इच्छुक यहां पूजा को आते हैं। मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बताते हैं, ‘भक्त मानते हैं कि मंदिर में विशेष शक्तियां हैं। देवी सती महा अष्टमी और नवमी पर पूजा करने वालों की कामना पूरी करती है। नवरात्र पर यहां पांच पशुओं की बली के साथ विशेष काल रात्रि पूजा होती है।  लिच्छवी काल के दौरान समृद्ध शिवालय शैली में यह मंदिर निर्मित है। मंदिर की वास्तुकला पैगोडा शैली में है। राजा प्रपात मल्ल द्वारा 1654 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था।

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