संपादक :- म0 मंजर आलम
बेतिया/बगहा। नामांकन के साथ ही पंचायत प्रत्याशियों की नींद हराम हो गई है। सुबह से देर रात तक मतदाताओं के आगे अपने पक्ष में मतदान करने की गुहार लगा रहे हैं। चौक चौराहों पर चाय- नाश्ते की दुकानों की बिक्री भी बढ़ गई है। वही चाटुकारों की फौज भी देखते बनती है। प्रत्याशियों को देखते ही चाटुकारों के पग हौले-हौले प्रत्याशियों के करीब पहुंच जाते हैं। फिर चुनावी प्रशंसा का दौर खूब चल रहा है। प्रत्याशियों के गुणगान करते करते थकान भी नही हो पा रही है। जितनी भी प्रशंसा उतनी ही खातिरदारी होती है। वाकपट्टू हैं ये चाटुकार। प्रशंसा करते भी ये नहीं थकते। चाय नहीं मुझे कॉफी चाहिए। बीड़ी नहीं मुझे सिगरेट चाहिए। पंचायत चुनाव में चाटुकारों के जुबान चलाने के साथ ही उनके रंग व ढंग भी बदल गए हैं। खान-पान के तौर तरीके भी बदल गए हैं। वही कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति भी विभिन्न प्रत्याशियों को पूरी मजबूरन करनी ही पड़ती है।