कार्तिक माह की शुक्लपक्ष का एकादशी व्रत करने से होता है मानव का कल्याण

बेतिया/बगहा। कार्तिक माह की शुक्‍लपक्ष की एकादशी को ही देवोत्‍थान एकादशी कहा जाता है। इस बाबत ज्योतिषाचार्य पंडित रिपुसूदन द्विवेदी ने बताया कि इस दिन भगवान विष्‍णु जी चार महीने में नीद पूरी करके जागते है। इसी कारण इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। हिन्‍दु धर्म में इस एकादशी की बहुत अधिक मान्‍यता है। क्‍योकि इसी एकादशी से हिन्‍दु धर्म में शुभ कार्यो की शुरूआत होती है। विष्‍णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्‍णु जी अपनी चार माह की निद्रा के बाद जागते है। जिस कारण इस एकादशी को देव एकादशी कहा जाता है। क्‍योंकि भगवान के जागने के बाद ही शुभ कार्य किए जाते है। जैसे शादी विवाह, कुआं पूजन, आदि का पूजन शुरु हो जाता है । इस एकादशी वाले दिन ही तुलसी विवाह होता है। इस दिन संसार का जो भी व्‍यक्ति माता तुलसी का विवाह शालीग्राम (विष्‍णु जी) के साथ करवाता है। उसके पिछले जन्‍म के सभी पाप नष्‍ट हो जाते है। इस जीवन में वह सुख- वैभव की जिदंगी पाकर अंत को भगवान के चरण कमलो में स्‍थान प्राप्‍त करता है।
पौराणिक मान्‍यताओ के अनुसार इस एकादशी को सभी एकादशियों में से सर्वश्रेष्‍ठ माना गया है। जिसका उल्‍लेख महाभारत जैसे ग्रंथ में मिलता है। क्‍योंकि उस काल में सम्राट युधिष्ठिर जी ने भगवान श्री कृष्‍णजी से इस एकादशी व्रत के बारे में पूछा था। जिसके बाद राजा युधिष्ठिर ने इस व्रत को विधिवत रूप से किया। जिसके कारण उसको सभी पापों से मुक्ति मिल गई। और अंत में वह मानव शरीर से ही स्‍वर्ग लोक में प्रवेश किया था।

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